बेझिझक बेहिसाब देखे  थे।

हमने उल्फ़त के ख्वाब देखे थे।।


खार कब थे मेरे तसव्वुर में

हमनें हर सू गुलाब देखे थे।।


फ़र्ज़ था आगही  ज़रूरत  भी

आपने तो अज़ाब देखे थे।।


आके तुर्बत में इतनी हैरत क्यों

क्या न खानाख़राब देखे थे।।


हम नये थे हिसाबे- दुनिया से

कैसे कहते जनाब देखे थे।।


सुरेश साहनी कानपुर

9451545132

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