दुनिया के मजदूरों एक हो !
कहते कहते हम थक गए ,
लेकिन एक नहीं हुए .
मार्क्स को एंजेल्स ने समझा ,
एंजेल्स की औलादों ने समझा '
और दुनिया भर के सरमायेदार-
एक हो गए ।
सब जहाँ से कमाते हैं ,
पैसा वहां से दूर रखते हैं ,
दूर मतलब विदेश ।
विदेश केवल हमारे लिए ,
उनका तो ग्लोबल मार्किट है ।
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