ये खता एक बार करके हम।

ख़ूब पछताए प्यार करके हम।।


फिर किसी और के न हो पाए

आपका इंतजार करके हम।।


आपको दिल नगद ही दे बैठे

अपनी खुशियां उधार करके हम।।


रह न पाए यकीन के काबिल

आप पर एतबार करके हम।।


आज खानाखराब बैठे हैं

उनकी दुनिया संवार करके हम।


सुरेश साहनी कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है