कहाँ तक बेनियाज़ी  सहन करते।

हम अपने आप को ही दहन करते।।


हमारा दूर होना ही उचित था

कहाँ तक बोझ दिल पर वहन करते।।


यूँही ये ज़िन्दगी इतनी गझिन है

इसे हम और कितना गहन करते।।


तुम्हारे ग़म न होते तो यकीनन

कहीं तन्हाइयों में रहन करते।।


तुम्हें नज़्में हमारी चुभ रही थीं

बताओ और कैसी कहन करते।।

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