शब्द की बाज़ीगरी होने लगी।
अब ग़ज़ल भी तेवरी होने लगी।।
हम पुनः हैं सृष्टि के आरंभ में
सभ्यता दिक्अम्बरी होने लगी।।
अब कहाँ कोमल हृदय वाले बचे
आज पीढ़ी बर्बरी होने लगी।।
क्यों न मधुशाला खुले राजस्व का
आधार जब कादम्बरी होने लगी।।
मृत्यु खा पीकर के मोटी क्या हुई
ज़िंदगानी अधमरी होने लगी।।
सच यही हैं सांवरे के प्रेम में
इक सलोनी सांवरी होने लगी।।
दिल ने बोला ज़िन्दगी से राग कर
और रुत आसावरी होने लगी।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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