फिर तुम्हें क्यों न भूल जायें हम।
किसलिए अपना दिल जलाएं हम।।
हाथ तुमने किसी का थाम लिया
क्यों न अपना ज़हां बसाएं हम।।
क्यों तेरा नाम लेके आह भरें
किसलिए अश्क से नहाये हम।।
ग़म के नगमों से बेहतर होगा
कुछ नए गीत गुनगुनाएं हम।।
तुमसे मरहम की क्यों उम्मीद करें
तुम तो चाहोगे टूट जाये हम।।
हम भी माज़ी को भूल जाते हैं
क्या गए वक़्त को बुलायें हम।।
किस खुशी में दें इम्तिहान नए
किसलिए ख़ुद को आज़माएँ हम।।
सुरेश साहनी ,कानपुर
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