कहन तो ठीक है उसकी मग़र न जाने क्यों।।

वो झूठ बोल के लगता है मुस्कुराने क्यों।।


न जाने उसने हुनर ये कहाँ से सीखा है

ज़रा सा बोल के लगता है सच छुपाने क्यों।।


उसे गिला किसी दुश्मन से है नहीं मालूम

तो दोस्तों को ही लगता है आज़माने क्यों।।


किसी की फ़िक्र में रोता नहीं मग़र अक्सर

उदासियों में वो लगता है गुनगुनाने क्यों।।


कि नफ़रतें तो जलाती हैं बस्तियाँ लेकिन

मुहब्बतों में उजड़ते हैं आशियाने क्यों।।


सभी कहे हैं ये उजड़े हुओं की है महफ़िल

तो ज़िंदाबाद हैं इनसे शराबखाने क्यों।।


सुरेश साहनी कानपुर

9451545132

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