जब उन्हें और कोई प्यारा था।

कैसे कह दूं कि मैं भी वारा था।।


फूल मैंने कभी दिए  जिसको

मुझ पे पत्थर उसी ने मारा था।।  


सबसे ज्यादा उम्मीद थी उनसे

जिस किसी का भी मैं सहारा था।।


तीरगी में हमें वो डाल गए

कल मैं जिनके लिए सितारा था।।


उनको उठना न था पसंद मेरा

मुझको झुकना ही कब गंवारा था।।


प्यार में जीत जीत कब होती

हार कर भी कहां मैं हारा था।।


काश वो लौट कर चले आते

साहनी ने बहुत पुकारा था।।


सुरेश साहनी,कानपुर

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