ईद के जैसी ईद नहीं है।
जश्न कोई मुनकीद नहीं है।।
आज उस माँ ने चाँद न देखा
कल जुनैद की ईद नहीं है।।
सब्र कहाँ तक कितना रक्खें
जब कोई उम्मीद नहीं है।।
क़ौम तरक्की कैसे करले
ज़ाहिद हैं तौहीद नहीं हैं।।
त्योहारों में जश्न न होंगे
ऐसी भी ताईद नहीं है।।
तकरीरों में खामोशी है
मौजूं है तमहीद नहीं है।।
अकलीयत पर मज़लूमों पर
ज़ुल्म न हो ताकीद नहीं है।।
बच्चे खुश हैं खुश रहने दो
दुनिया नाउम्मीद नहीं है।।
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