हम थे प्रेम पथिक जाने कब

राह भटक कर इधर आ गए।

मेरे गीतों में जाने कब

राजनीति के रंग आ गए।।


उधर जोड़ना  इधर तोड़ना

उधर मनाना इधर थोपना

उधर शान्ति नन्दन कानन की

इधर मरुस्थल जैसी तृष्णा


हम तिरसठ के योगी कैसे

घटकर छत्तीस भोग पा गये।।हम थे.....


एक तरफ मस्तों की टोली

दूजी ओर कुटिलताएँ हैं

अपने मन को हम मधुवन से

कंटक पथ पर ले आये हैं


उधर बुहरती राह हमारी

इधर मित्र काँटे बिछा गये।।हम थे...


जीवन था सतरंगी सपने-

कभी रूपहरे कभी सुनहरे

आज व्याकरण बद्ध हो गए

कड़वे कर्कश कुटिल ककहरे


आज विवशता है दोहरापन

गिरगिट भी हमसे लजा गये।।हम थे...

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