क्या जानो तरुणायी है क्या।
जाने पर भरपाई है क्या।।
ये शहरों में मिलने वाली
कोई नज़र लजायी है क्या।।
जीवन है अनमोल खजाना
कोई आना पाई है क्या।।
लज्जा गांवों में बसती है
शहरों में रुसवाई है क्या।।
कब देखा महुए का चूना
क्या जानो अमराई है क्या।।
कितनी चहक रही है कोयल
पी से मिलकर आई है क्या।।
तुम एसी कल्चर के जाए
क्या जानो पुरवाई है क्या।।
उसने मीठी गाली क्यों दी
वो अपनी भौजाई है क्या।।
सुरेश साहनी कानपुर
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