घर है जिस से घर का कोना कोना भी।।
माने तो रखता है उसका होना भी।।
उस बिन घर का सोना जैसे माटी है
वो है तो माटी माटी है सोना भी।।
जिसकी बातों में इतना अपनापन है
पाना है उसकी बातों में खोना भी।।
बोझ विरासत का इतना आसान नहीं
रीति रिवाजों को मुश्किल है ढोना भी।।
उसकी बातें भी मनभावन होती हैं
मनमोहक है उसका रूप सलोना भी।।
जब लड़ती है ज़्यादा प्यारी लगती है
निश्चित करती होगी जादू टोना भी।।
बातें करना या चुप रहना कुछ भी हो
वो है तो है घर का हँसना रोना भी।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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