फिर मत कहना तैयार न था।

सच कहना उससे प्यार न था।।


उसकी मंज़िल थी तेरा दिल

तेरा ही पारावार न था ।।


इससे लेना उसको देना

ये प्यार कोई व्यापार न था।।


तुम एक न एक दिन सोचोगे

वो अच्छा था बेकार न था।।


उसको ग़म दे डाले जिसको

तेरा दुःख स्वीकार न था।।


माना उसमें भी कमियां थी

पर तू भी कम ऐयार न था।।


बेमौसम आंसू बरसेंगे

इन आँखों से आसार न था।।


वो शीशे सा दिल तोड़ दिया

तुमको इसका अधिकार था।।


ऐ काश कि वो ताज़िर होता

पर दिल उसका व्यापार न था।।

सुरेशसाहनी, कानपुर

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