इक अधूरी गजल का मतला हूँ।
या की बेचैनियों का पुतला हूँ।।
मेरे हालात पे सवाल तो हैं
पर तवारीख़ में सुनहला हूँ।।
तुमसे आगे भी और आएंगे
फिर न कहना कि मैं ही अगला हूँ।।
कल कोई आफ़ताब आएगा
हो के महताब जो मैं निकला हूँ।।
हाँ मगर मुझपे ऐतबार करो
मैं न बदलूँगा और न बदला हूँ।।
आज पीकर के लड़खड़ाने दो
मुद्दतों बाद आज सम्हला हूँ ।।
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