दादरी नंगी हुयी दनकौर नंगा कर दिया।

इस सियासत न हमें हर ओर नंगा कर दिया।।


 इस ज़हाँ को कौन पूछे आसमां  की फ़िक्र है

आदमियत छोड़ हिन्दू मुसलमां की फ़िक्र है

यूँ भी चिथड़ों में थे हम कुछ और नंगा कर दिया।।.....


 जाति भाषा धर्म के आधार पर नफरत बढ़ी

कमजोर  बेइज्जत हुए ज़रदार की इज़्ज़त बढ़ी

घर की बातों पर मचाकर शोर नंगा कर दिया।।


 हर मुहल्ले में कोई लम्पट करे नेतागिरी

और उसके लगुवे भगुवे कर रहे दादागिरी

हर ठिकाना हर गली हर ठौर नंगा कर दिया।।


हर गली में निर्भया की चीख है चित्कार है

आसिफा राधा सभी को कृष्ण की दरकार है

आज इस इरफान ने मन्दसौर नँगा कर दिया।।

सुरेश साहनी कानपुर

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