मैंने मुरझाये चेहरों के साथ बहुत मुस्काना चाहा।

मैंने व्यथित हृदय वालों से प्यार किया दुलराना चाहा।।

एकाकीपन अंतिम सच है

हर महफ़िल झूठी महफ़िल है

सत्य यही है मेरी मंजिल

 केवल मेरी ही मंजिल है

मैंने नाहक कुछ मित्रों को मंजिल तक पहुंचाना चाहा।।

ख़्वाब हक़ीक़त क्या हो पाते

झूठ बदलता कैसे सच में

ईर्ष्या द्वेष दम्भ छल वाली

बातें रहीं अगर अन्तस में

व्यर्थ उन्हें सम्यक जीवन जीने के ख़्वाब दिखाना चाहा।।

सुरेशसाहनी

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