मिलने में रुसवाई थी क्या।

तुम सचमुच बौराई थी क्या।।


फिर किसका अफसोस करें हम

साथ खजाना लाई थी क्या।।


क्यों जाने पर इतना हल्ला

मौत बता कर आई थी क्या।।


चेहरा ढक कर ही क्यों जाना

आदत से हरजाई थी क्या।।


शाखे गुल इक लचकी तो थी

वो उनकी अंगड़ाई थी था।।


मयकश अच्छे भी होते हैं

कोई और बुराई थी क्या।।


कौन साहनी फर्जी कवि है

कविता नई सुनाई थी क्या।।


सुरेश साहनी कानपुर

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