एक  पुरानी ग़ज़ल सुनोगे।

आज सुनोगे कि कल सुनोगे।।

वही सुनाऊँ उल्फ़त वाली

या फिर उसका बदल सुनोगे।।

कैसे इन शातिर आंखों से  

बातें सीधी सरल सुनोगे।।

क्या अब भी उस भोलेपन से

बैठ हमारी बगल सुनोगे।।

बस इल्ज़ाम लगा बैठे थे

किसने की थी पहल सुनोगे।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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