श्याम अगर इस युग में होते

क्या कालीदह जलने देते।

शस्य श्यामला इस धरती पर

किन्चित पाप न पलने देते।।


शिशुपालों ने गाली देकर

मर्यादाएं खंडित की हैं

दुष्ट शकुनियों ने हर घर की

नींव शिलायें खंडित की हैं


चीरहरण दुष्कर्म अनवरत

क्या तुम यूँ ही चलने देते।।


द्रोण आज भी काट रहे हैं

प्रतिभाओं के अंक अंगूठे

फिर औचित्य सिद्ध करने को

गढ़ते हैं  वे तर्क अनूठे


क्या तुम  ज्ञानयोग साधक को

अर्थयोग से छलने देते।।


पुत्र मोह अब रीति बनी है

कितने पिता आज अंधे हैं

रिश्ते अपमानित होते हैं

पितामहों के हाथ बंधे हैं


क्या तुम इन मन के कालों को

कुत्सित चालें चलने देते।। श्याम अगर इस


कालयवन फिर से पश्चिम की

सीमाओं को लाँघ रहा है

जरासंध के उकसावे पर

काली नज़रें डाल रहा है


क्या माँ के आंचल पर कलुषित

कुटिल दृष्टि को पड़ने देते।। श्याम अगर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है