भीड़ में तन्हाइयों का साथ दो।
वक़्त की रानाईयों का साथ दो।।
उम्रभर हरजाईयों का साथ दो।
वक़्त पर अच्छाईयों का साथ दो।।
तीरगी में छोड़ जायेंगी मगर
आज इन परछाइयों का साथ दो।।
प्यार पाना है तो छुपना छोड़कर
वज़्म में रुसवाइयों का साथ दो।।
सीख लो लिपटी लता से प्रियतमे
फागुनी अंगड़ाईयाँ का साथ दो।।
गर्मियां सर पीट कर रह जाएंगी
बारियों अमराईयों का साथ दो।।
पेंग सावन में बढ़ा दो प्यार की
झूमकर पुरवाईयों का साथ दो।।
आज के सारे भले धृतराष्ट्र हैं
इसलिए बीनाइयों का साथ दो।।
मौन ठूंठों में लुटी थी द्रौपदी
कृष्ण जैसे भाईयों का साथ दो।।
फिर से तुमको ज़िन्दगी धोखा न दे
मौत के सैदाइयों का साथ दो।।
भीड़ से बाहर समझ लो मौत है
भीड़ में तन्हाइयों का साथ दो।।
सुरेशसाहनी, कानपुर
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