जिस्म जब भर निगाह देखा कर।
बेबसी रंज़ आह देखा कर।।
मेरा दमन टटोलने वाले
दाग खुद के सियाह देखा कर।।
एक तेरी वज़ह से दिलवाले
कितने दिल हैं तबाह देखा कर।।
जो तेरा मुन्तज़िर अज़ल से है
यार उसकी भी राह देखा कर।।
दूसरों पर सवाल कर लेकिन
पहले अपने गुनाह देखा कर।।
रोशनी अपने घर मे कर पहले
फिर कहीं खानकाह देखा कर।।
लड़ने वाले भी जा के करते हैं
मयकदे में निबाह देखा कर।।
सुरेश साहनी, कानपुर
Comments
Post a Comment