कुछ लोग जी रहे हैं कुछ लोग मर रहे हैं
इस मस्लेहत से वाकिफ सारे गुज़र रहे हैं
इतनी बड़ी बगावत क्यों आप कर रहे हैं
सुन देख तो रहे थे सच बोल भी रहे हैं
कुछ लोग मर रहे हैं क्या फर्क पड़ रहा है
जब सौ करोड़ मुर्दे इंसान जी रहे हैं
दुनिया को क्या हुआ है दुनिया तो चल रही है
दुनिया की फ़िक्र में क्यों बेज़ार हो रहे हैं
मज़हब परस्त कोई इंसान कब रहा है
ये जानवर हैं सारे खूँख्वार हो गए हैं
हथियार ले के दुनिया आपस मे लड़ रही है
हथियार से अमन के ऐलान हो रहे हैं
दुनिया बनाने वाला ख़तरे में है बताकर
मज़हब चलाने वाले सब मौज कर रहे हैं
सुरेशसाहनी, कानपुर
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