हम इसी वास्ते निकल आये।
इत्तेफाकन न बात चल जाये।।
बेख़ुदी राह में न दम तोड़े
लड़खड़ाकर न दिल सम्हल जाये।।
तितलियों धूप में न इतराओ
पंख नाजुक कहीं न जल जाये।।
मैंने कल ख़्वाब में उसे देखा
बात उसको पता न चल जाये।।
रहती जन्नत को देख ले तो फिर
शेख भी मयकदे में ढल जाये।।
फिर भी मौसम पे एतबार तो है
आदमी कब कहाँ बदल जाये।।
इश्क़ के फेर में न डाल हमें
ये न हो हाथ से ग़ज़ल जाये।।
Suresh sahani, kanpur
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