हद से ज्यादा हसीन हैं फिर भी

आप कितनी ज़हीन हैं फिर भी।।

 पास उनके महल दुमहले थे 

आज ज़ेरे-ज़मीन हैं फिर भी।। 

आदमी एहसास छोड़ चुका

तो मशीनें मशीन हैं फिर भी।।

सख्त जां भी तो हार जाते हैं

आप तो नाज़नीन हैं फिर भी।।

भाव उनके भी अब नहीं मिलते

जोकि कौड़ी के तीन हैं फिर भी।।

इतनी शाइस्तगी है नज़रों में

आप तो जायरीन हैं फिर भी।।

वो हमारी नज़र में क्या होंगें 

लाख गद्दीनशीन हैं फिर भी।।

मेरी किस्मत में क्यों अंधेरे हैं

आप तो महज़बीन हैं फिर भी।।

अब न जलवा हुआ तो कब होगा

सामने हाज़रीन हैं फिर भी।।

सुरेशसाहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है