किसलिये तुम आस के दीपक बुझाते फिर रहे हो।
तेज वंशी हो अमावस्या जगाते फिर रहे हो ।।
कल तुम्हारे पाप के फल भोगेगी जब सन्तति तुम्हारी
क्यों उजालों की जगह पर तम उगाते फिर रहे हो।।
क्या तुम्हें विश्वास है दिनमान यह कल फिर उगेगा
किसलिये फिर राहु के गुणगान गाते फिर रहे हो।
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