अब देश कमजोर करने के लिए किसी बाहरी ताकत को कुछ नहीं करना पड़ेगा। पूरे देश मे बना भयावह वातावरण इस के लिए पर्याप्त है। किंतु इसके लिए कोई दल विशेष दोषी नहीं है।इसके लिए वे सभी व्यक्ति,नेता अथवा दल दोषी हैं,जिन्होंने अपने राष्ट्रीय नेताओं को अपना रोल मॉडल तो बनाया किन्तु उनके सिद्धान्तों और जीवन मूल्यों से सदैव किनारे रखा।
वे सभी लोग दोषी हैं जिन्होंने मात्र विरोध के नाम पर विरोध की राजनीति की और देश के विकास में बाधा डालते रहे। इसका एक उदाहरण कंप्यूटर तकनीक के विरोध में बैलगाड़ी वाला प्रदर्शन भी है।
उन सभी फर्जी समाजवादी नेताओं का दोष भी है जो समाजवाद के नाम पर राजनीति में सफल तो हुए ,किन्तु सत्ता पाते ही समाज से विमुख हो गए।
वे अल्पसंख्यक नेता भी जिम्मेदार हैं जिन्होंने अपनी ऊर्जा अपने समुदाय के सांगोपांग विकास की जगह केवल उनकी मज़हबी पहचान बनाये रखने में लगा दी। जबकि इस संकीर्ण सोच ने अल्पसंख्यक समुदायों को राष्ट्रीय विकास की मुख्यधारा से बाहर कर दिया।
वे अम्बेडकरवादी भी ज़िम्मेदार हैं जो बाबा साहेब के नाम पर राजनीति तो करते हैं परंतु अपने समाज को सही दिशा देने की बजाय केवल जातिय घृणाओं को हवा देने में लगे रहे।जबकि बाबा साहेब और मान्यवर कांशीराम की सोच दलित और सवर्ण के बीच की खाई पाटने की रही।फिर सबसे बड़ा दुर्भाग्य कि वे नेता के रूप में स्थापित होते ही अपने समाज को बेचने में सबसे आगे रहे।
वे सभी पिछड़े नेता भी ज़िम्मेदार हैं जिन्होंने समाज कल्याण की बात तो उठायी, परन्तु इस कल्याण को कभी अपने परिवार से आगे नहीं आने दिया।
वे सभी कम्युनिस्ट विचारक भी उतने ही जिम्मेदार हैं जिन्होंने मार्क्स के सिद्धांतों और भारतीय सामाजिक परिवेश में समन्वय नहीं होने दिया। और भारत के वास्तविक वंचित समाज के हाथ मे नेतृत्व नहीं आने दिया।
वे सभी राष्ट्रवादी भी उतने ही जिम्मेदार हैं जिन्होंने अपना हिंदुत्व केवल मत संग्रह करने तक सीमित रखा और समाज के बहुत बड़े हिस्से को अपनी घृणा का शिकार बनाये रखा।
कांग्रेस भी उतनी ही जिम्मेदार है ,जिसने गांधी-नेहरू के दर्शन को ताक पर रखकर स्वयं को केवल सत्ता की राजनीति तक सिमटाये रखा।
और आज भी कांग्रेस एसी कमरों और सुविधाभोगी नेताओं के चंगुल से बाहर नहीं निकल पा रही है।
ऐसे तमाम कारण हैं जिनसे देश बाहरी ताकतों को हंसने का मौका दे रखा है।
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