तुम अमृत पी लेते ख़ुद को
देव तुल्य हो जाने देते।
अपने गरल हमें दे हमको
नीलकंठ हो जाने देते।।
हमने कब रोका था तुमको
सब आकाश तुम्हारा ही था
बीच राह में टूट गया जो
वह विश्वास तुम्हारा ही था
दीप जलाते आशाओं के
तूफानों को आने देते।। अपने गरल...
शाश्वत प्रेम भूलकर तुमने
अनुबंधों का जीवन जीया
देह अर्थ आसक्त कृतिम किन
सम्बन्धों का जीवन जीया
भाव प्रधान प्रेम अपनाते
कुछ खोते कुछ पाने देते।।अपने गरल....
सुरेशसाहनी
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