वे खुश अपनी वाल पर ,हम अपनी पर यार।
दोनों अपनी पर अड़े ,कैसे हो संचार।।
मुख पुस्तक पर मित्र हैं बेशक़ पाँच हज़ार।
क्या जो मुखड़ा पढ़ सकें हैं कुछ ऐसे यार।।
देखा कवि ने वाल पर दिल का दर्द उड़ेल।
सौ लोगों ने कह दिया नाइस वेरी वेल।।
सुन्दर छवि संग डाल दी दो लाइन इक बार।
टिप्पणियां हैं तीन सौ, लाइक डेढ़ हज़ार।।
आज भले स्वीकार्यता में प्रतीत हो देर।
मौलिकता का मान ही होता देर सवेर।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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