एक ग़ज़ल पेशे-ख़िदमत है। आप सब का आशीर्वाद चाहूँगा।


घरौंदे आशियाने किस लिए हैं।

ज़हां भर के ठिकाने किसलिये हैं।।


ज़रा बोलो ये गिरजाघर ये मस्ज़िद

शिवाले आस्ताने किसलिये हैं।।


डरे सहमे हैं इतने लोग आख़िर

मसीहा-ए-ज़माने किसलिये हैं।।


ख़ुदा के वास्ते कुछ तो बताओ

भरम के सब बहाने किसलिये हैं।।


प्रभू की किसलिये इतनी सुरक्षा

ये सब बंदूक ताने किस लिए हैं।।


अगरचे आप हैं माया से ऊपर

तो दौलत पर निशाने किसलिये हैं।।


सुना है छोड़ जाना है यही पर 

तो इतने दर बनाने किसलिये हैं।।


बिना कुछ भी किये वो पेट भरता

तो ये कल कारखाने किसलिये हैं।।


ग़ज़ल तो लिख रहे हैं #साहनी भी

अभी तक ये अजाने किसलिये हैं।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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