दीमक अंदर है बाहर है।
दीमक अब सिंहासन पर है।।
पहले हल फिर बैल बिके थे
आगे खेती का नम्बर है।।
अब कैसी मर्यादा है जब
पंचायत चौराहे पर है।।
कल घर साथ बनाया सबने
आज अलग चूल्हा टब्बर है ।।
यूँ बाज़ार न बनने देन्गे
देश हमारा घर था घर है।।
सुरेशसाहनी, कानपुर
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