वस्ल की बात क्यों नहीं करते।

तुम मुलाक़ात क्यों नहीं करते।।

उम्र दे दी तमाम दिन किसको

साथ इक रात क्यों नहीं करते।।

चाँद रातों में मुझसे मिलने के

इन्तेजामात क्यों नहीं करते।।

वस्ल की रात की सहर गुल हो

वो करामात क्यों नहीं करते।।

मैं मिलूं तुमसे और हम हों लें

ऐसे हालात क्यों नहीं करते।।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है