आडवाणी में क्या बुरायीं है।

सिर्फ मस्ज़िद ही एक गिराई है।।

आज काँटे कहाँ से आ टपके

आज जबकि बहार आयी है।।

आज वो ही हुए प्रतीक्षारत

जिनकी मेहनत से रेल आयी है।।

अब जलन किसलिए तपिश कैसी

आग हमने ही तो लगायी है।।

दुनियादारी मगर निभानी है

रो के हँस के उसे बधाई है।।

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