नौनिहालों के जेहन में भर दी नफरत किसलिए।

पड़ रही है आपको इसकी ज़रूरत किसलिए।।


आप हैं अल्लाह वाले ,आप हैं भगवान के

इतनी अज़मत है अगर तो नीच हरकत किसलिए।।


सब के दावे हैं तरक्की-ए-अवाम-ऒ-मुल्क के

फिर ये सौदे, ये दलाली, ये तिज़ारत किसलिए।।


जात और मज़हब को लेकर हो रहे जब इंतखाब

तो सभी से ये लगावट ये मुहब्बत किसलिए।।


जानते हैं सब कि इससे मुल्क को नुकसान है

फिर ये भाषा प्रान्त मजहब की सियासत किसलिए।।


जबकि जाने कितने इन्सां बे दर-ओ-दीवार है

 दैरो-हरम के नाम फिर इतनी मशक्कत किसलिए।।

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