खुद में डूबा हुआ मैं किधर चल पड़ा।

श्वास क्यों रुक गयी मैं अगर चल पड़ा।।खुद में डूबा.....


मेरी दीवानगी औ ऊधम कम हुए

मेरे जाने से दुनिया के ग़म कम हुए

लोग समझे मैं दूजे नगर चल पड़ा।।खुद में डूबा.....


इक मुसाफ़िर  था मैं चार दिन के लिए

नेह किस से लगाता मैं किन के लिए

मोह माया सभी छोड़कर चल पड़ा।।खुद में डूबा.....


जिंदगी में मेरी कुछ कमी भी न थी

बिन तुम्हारे मगर जिंदगी भी न थी

राह तकते थकी यह उमर चल पड़ा।।खुद में डूबा.....


एक हद तक तेरा मुंतज़िर मैं रहा

इक तेरे वास्ते दरबदर मैं रहा

अन्ततः प्राण प्रण हारकर चल पड़ा।।खुद में डूबा.....

सुरेशसाहनी, कानपुर

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