ये हुस्न बेमिसाल है कितनी बहार का।

गोया कोई ख़याल हों नगमानिगार का ।।


ये हुस्न देख कर कई इमां पे आ गए

सब को यकीन हो चला परवरदिगार का।।


महफ़िल में मेरे सामने जलवानुमा न हो

इतना न इम्तेहान ले सब्रो-क़रार का।।


गैरों से मेलजोल भली बात तो नही

कमज़ोर सिलसिला है सनम एतबार का।।


कलियाँ चटक चटक के जवां फूल बन चुकीं

दम टूटने लगा है मेरे इंतज़ार का।।

सुरेशसाहनी, कानपुर

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