शमए-महफ़िल न बन सका अबतक।

हूँ बियावान का दिया अबतक।।

धड़कनें दिल की जिससे रुक जातीं

ऐसा कुछ भी नहीं हुआ अबतक।।

दिल लगाता तो टूट सकता था

दिल किसी से नहीं लगा अबतक।।

मर्ज़ तो कोई भी बता देगा

इश्क़ की है कोई दवा अबतक ।।

जिसने देखा है वो ही बात करे

मैंने देखा नहीं खुदा अबतक।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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