हम तेरे  वादे  लिये बैठे रहे ।

बेख़ुदी में बिन पिये बैठे रहे ।।

नफ़रतें बाज़ार में चलती रहीं

हम मुहब्बत ही लिये बैठे रहे ।

उसको शायद और ही दरकार थी

और हम इक दिल दिए बैठे रहे ।

सिर्फ़ ख़ुद्दारी ने बहकाया हमें

जिनको कुछ था चाहिए बैठे रहे ।

हासिलें जब हसरतन तकती रहीं

हम पकड़ कर हाशिये बैठे रहे ।।

राह में गड़ कर नज़र पत्थर हुईं

ख़त दबाये डाकिये बैठे रहे ।।

तेरे आने का यकीं हरदम रहा

मरने वाले भी जिये बैठे रहे।।

सुरेशसाहनी, कानपुर

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