हर सिकन्दर भरम में रहता है।
कौन जाकर अदम में रहता है।।
वक़्त बहता है हर घड़ी यकसां
आदमी ज़ेरोबम में रहता है।।
ग़ैब दिखता है उसको तुरबत में
आदमी किस वहम में रहता है।।
आज तो एक से निबह कर ले
क्यों बहत्तर के ग़म में रहता है।।
आदमी आदमी नहीं रहता
जब वो दैरोहरम में रहता है।।
हौसले की सलाहियत है ये
आसमाँ तक क़दम में रहता है।।
एक ज़र्रे ने आसमां लिक्खा
साहनी किस फ़हम में रहता है।।
सुरेशसाहनी, कानपुर
Comments
Post a Comment