प्यार शर्तों पे हो नहीं पाया।
रूह से जिस्म ढो नहीं पाया।।
धुंधली यादों पे रो नहीं पाया।
दिल की तस्वीर धो नहीं पाया।।
जिनके चर्चे बज़ार में आते
मैं वो अफ़साने बो नहीं पाया।।
तर्ज़े-सावन मैं रो पड़ा फिर भी
उनका दामन भिगो नहीं पाया।।
बहरेग़म ने कोई कमी की क्या
मैं ही ख़ुद को डुबो नहीं पाया।।
रात भर नींद ने मशक़्क़त की
रात भर ख़्वाब सो नहीं पाया।।
साहनी बच गया अनाओं से
जग के मेले में खो नहीं पाया।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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