आज दिन भर नहीं रही बिजली
फिर भी रौनक रही बाज़ारों में
और पर्दानशीन माँये कुछ
अपने माथे पे सलवटों के संग
अपनी आंखों में इक चमक लेकर
देखती थीं नए नए कपड़े
दाम पढ़कर बुझे हुए मन से
फिर उन्हें छोड़कर के बढ़ लेतीं
सोच में है कि कल सुबह बच्चे
क्या पहन कर मिलाद देखेंगे
आज फिर देर तक रुके मज़दूर
ईद भर की पगार की ख़ातिर
पूँजीयां हर तरफ नुमायां है
हर तरफ रोशनी है दौलत की
रोशनी बिग बाजार से छनकर
कुछ सटी बस्तियों में आती है
मेरे घर के बगल में खालिद हैं
ईद उनके लिए नही आती
कुछ सिवईयाँ उधार में लाकर
कुछ करेंगे वो ईद की ख़ातिर
#ईद मुबारक
Suresh Sahani कानपुर
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