तुम का उखाड़ लईहो ।

केहिका पछाड़ लईहो।।

बहुमत मिला है उनका

तुम का बिगाड़ लईहो।।


जब एक मत नहीं हौ

काहे बदे मरत हो

दल दल में एक हुई के

झंडा न गाड़ लईहो।।


ऐसे न होई खेती

सब आन के भरोसे

तुमसे न हुई सकत है

अपने न फाड़ लईहो।।


पाछे न जीत पाये

मैनेजरन के बूते

ऐसे न जीत पईहो

जो फिर जुगाड़ लईहो ।।


चाहो तो कइ सकत हो

गम्भीर हुई के देखो

हर बार हम नये हैं

की केतनी आड़ लईहो।।

सुरेशसाहनी, कानपुर

#व्यंग रचना

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