ज़ीस्त तनहा निकाल दे मौला।
या कोई हमख़याल दे मौला।।
पेशतर कुछ ज़बाब देता चल
फिर कोई भी सवाल दे मौला।।
नाख़ुदा भी तेरे भरोसे हैं
डूबतों को उछाल दे मौला।।
हम भी हैं तेरी सरपरस्ती में
इक नज़र हम पे डाल दे मौला।।
तेरे जैसा कोई करीम नहीं
कोई किसकी मिसाल दे मौला।।
सुरेशसाहनी
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