आज रूठे हैं हमको मना लीजिए।

बात बिगड़ी हुई है बना लीजिए।।


अपनी पालकों में हमको छुपा लीजिए।

अपने सीने में हमको बसा लीजिए।।


हम से बढ़कर भले खूबसूरत है वो

उसकी जानिब से नजरें हटा लीजिए।।


पहले सुनिए मेरी एक एक इल्तिज़ा

बाद में जो भी आए सुना लीजिए।।


जब जनाजा हो तब ही उठाएंगे क्या

आज दर पे पड़े हैं उठा लीजिए।।


आपके हैं तो क्या बेवुजूद हो गए

गुड की ढेली समझ कर न खा लीजिए।।


ये वो दरिया है जिसका किनारा नहीं

डूबिए इश्क में फिर मजा लीजिए।।


इश्क से बढ़ के कोई इबादत नहीं

हर अना छोड़कर सिर झुका लीजिए।।


दिल के सौदे में बटमारियां छोड़कर

बस वफ़ा दीजिए और वफा लीजिए।।


साहनी जब कहोगे चले आयेंगे

प्यार से जब भी चाहे बुला लीजिए।।


सुरेश साहनी कानपुर

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