आज कतरा के ग़ज़ल
मेरे बगल से गुज़री।
पैकर-ए- हुस्न में ढल
मेरे बगल से गुज़री।।
जान जाती सी लगी
मौत आती सी लगी
एक मुश्किल सी सहल
मेरे बगल से गुज़री।।
साँस कुछ रुक सी गयी
धड़कने थम सी गयीं
शर्म जब करके पहल
मेरे बगल से गुजरी।।
बज उठे साज कई
बन गए ताज कई
जब वो मुमताजमहल
मेरे बगल से गुज़री।।
सुरेशसाहनी, अदीब, कानपुर
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