इश्क़ में हम नाक़ाबिल ठहरे।

तुम भी तो पत्थरदिल ठहरे।।

तुम भी कितने शोख़ नज़र थे

हम भी आधे बिस्मिल ठहरे।।

तुमने भी क्या चाहा हमसे

राही मंज़िल मंज़िल ठहरे।।

उफ़ मासूम अदायें तेरी

तुम तो अच्छे क़ातिल ठहरे।।

हम दुनिया से लड़ सकते थे

लेकिन तुम ही बुज़दिल ठहरे।।

मोती थे गहरे पानी में

तुम ही साहिल साहिल ठहरे।।

Suresh Sahani कानपुर

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