हम भी तुम पर वार चुके हैं
यूँ ही नहीं बावरी हो तुम।
तन मन तुम पर हार चुके हैं
यूँ ही नहीं बावरी हो तुम।।
गुड्डे गुड़ियों वाले दिन से
चूल्हे चकियों के आंगन तक
बचपन के भोलेपन से ले
यौवन वाले अल्हड़पन तक
सौ सौ नज़र उतार चुके हैं
यूँ ही नहीं साँवरी हो तुम।।
अब तक तुमने खेल खिलौने
अठखेली में समय बिताया
मेरा हृदय लिया तो तुमने
किन्तु उसे कितना अपनाया
हम यह भी स्वीकार चुके हैं
यूँ ही नहीं भ्रामरी हो तुम।।
बचपन मे देखा करती थी
पुलकित हर्षित विस्मित होकर
पहली बार निहारा बेशक़
तुमने स्नेह-लाजयुत होकर
हम भी सतत निहार चुके हैं
यूँ ही नहीं मदभरी हो तुम।।
सुरेशसाहनी, कानपुर
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