वो कहते हैं मुहब्बत इक हुनर है
इबादत हम इसे समझा किये थे।।सुरेश साहनी
तमाम बंदिशें ख़्वाहिश मिटा नहीं सकती।
अगर तू चाह ले तो कैसे आ नहीं सकती।।साहनी
ज़िन्दगी की एक मंज़िल थी
तो आख़िर क्यों जिये।
आख़िरत जब कुछ न हासिल थी
तो आख़िर क्यों जिये।।
वस्ल का इंतज़ार था कितना
आह फिर हो गयी मुक़म्मल शब।।
सुरेश साहनी
किसकी आंखों का बह गया काजल
शाम से तीरगी ज़ियादा है।।सुरेश
उस गुल से ये कह दो जाकर
कांटों में महफूज़ रहेगा।।साहनी
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