अब मत पूछो मुझसे कितने
सौगात समय ने छीन लिए।
जैसे बचपन की सुबह शाम
दिन रात समय ने छीन लिए।।
जो दिया समय ने छीन लिया
जो नहीं दिया वह भी छीना
कर दिया देह की चादर का
अंतर्मन उससे भी झीना
अंतस्थल कर कर के विदीर्ण
जज्बात समय ने छीन लिए।।
छीना बाबू जी का दुलार
ममता का आंचल छीन लिया
आंगन पनघट वीथी गलियां
में बीता हर पल छीन लिया
साहब कहकर लल्ला वाले
सब ठाठ समय ने छीन लिए।।
बचपन तो गया लड़कपन भी
यौवन अल्हड़पन ले डूबा
तब बना बुढ़ापे में आकर
हरि भजन भाव का मंसूबा
अब मिले भुने मेवे बदाम
जब दांत समय ने छीन लिए।।
सुरेश साहनी कानपुर
९४५१५४५१३२
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