अभी शून्य से सफर शुरू कर
शिखर चूमने निकल पड़ा हूँ....
सागर तक कितनी बाधायें
जाति धर्म की प्रबल शिलायें
राह रोकने को उद्यत हैं
सुन हिमनद सा उबल पड़ा हूँ....
अभी मेरी पहचान नहीं है
अभिघोषित सम्मान नहीं है
कद से कहीं अधिक साहस है
तभी भीड़ में उछल पड़ा हूँ....
सब कुछ है बस नाम नहीं है
महिमामण्डित काम नहीं है
आज नहीं कल हो जाएगा
लिए भावना प्रबल पड़ा हूँ.....
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