मंज़र ये हक़ीक़त के भरम तोड़ रहे हैं।

हम आप का हर एक वहम तोड़ रहे हैं।।


जब इंतजामिया का ही दम टूट चुका हो

 फिर जाके बताएं किसे दम तोड़ रहे हैं।। 


कल तुझको दिखेगा जो परस्तार हैं तेरे

बाज आके तेरे दैरो-हरम तोड़ रहे हैं।।


ये कैसे हैं महबूब कि जिस दिल मे रहे हैं

उस घर को ये पत्थर के सनम तोड़ रहे हैं।।


अब तुझको दुआओं में रखें हमसे न होगा

जा तुझसे मुहब्बत की क़सम तोड़ रहे हैं।।

सुरेश साहनी ,कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है